बुधवार, 27 जनवरी 2010

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास ही जीवन को मनभावन रंगों से श्रृंगारित करता है। जिसे स्वयं पर विश्वास नहीं उसके जीवन में सुख का अहसास नहीं। जीवन की शानदार उपलब्धियाँ आत्मविश्वास के बल पर अर्जित की जाती हैं।

व्यक्तित्व का बहुरंगी विकास विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है। जिसमें आत्मबल नहीं उसके लिए जीवन मुसीबतों का पहाड़ है। आत्मविश्वास मन को शक्ति के एहसास और तन को ऊर्जा से भर देता है। जमाने की सारी मुश्किलें हौसलामंद व्यक्ति के आगे नतमस्तक हो जाती हैं।

दुर्बल आत्मा मनुष्य पलायनवादी होता है। वह स्वयं और संसार की नजर में दीन-हीन होकर जीता है जबकि आत्मविश्वासी व्यक्ति आशावान और आस्थावान होता है। परम पिता परमेश्वर के प्रति आस्थाभाव जीवन को आनंदमयी अनुभूति से अभिभूत कर देता है। आस्थावान मनुष्य यह भलीभाँति जानता है कि हम उस अलौकिक शिल्पकार की वे सुंदर रचनाएँ (संतानें) हैं जिनकी अंतरात्मा में खूबियों का खजाना है। चिंतन की स्निग्धधारा आंतरिक सौंदर्य को निखारती है, जबकि चिंता की कारा काहिल मनुष्य को ताउम्र जकड़े रहती है। श्रद्धा और विश्वास से भरा व्यक्ति न तो निराश होता है और न ही हताश। वह स्वयं आगे बढ़ता है और प्रतिनिधित्व कर दूसरों का दिग्दर्शन करता है। अपनी क्षमताओं पर भरोसा ही व्यक्तित्व में स्वाभिमान का रंग भरता है। आत्मशक्ति से परिचित मनुष्य खुशामद और चापलूसी से कोसों दूर रहता है। श्रद्धारहित व्यक्ति शंकालु होता है। हर चीज को शंका की नजर से देखने वाला अविश्वासी मनुष्य जीने का हुनर नहीं जानता, जबकि विश्वासी मनुष्य जीवन शिद्दत और सलीके से जीता है। अपने पर अविश्वास एक भयंकर मानसिक रोग है, जबकि आत्म संबल खुशहाली का सुनहरा संदेश है। आत्मशक्ति की कमी व्यक्ति को परामुखापेक्षी बना देती है। कहा गया है- 'किसी की मेहरबानी माँगना अपनी आजादी बेचना है।' गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा भी है- 'पराधीन सपनेहूँ सुख नाहि।' खुद पर यकीन ही आत्म-उत्कर्ष की आधारशिला है।

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