बुधवार, 27 जनवरी 2010

वाणी

वाणी की देवी ‍वीणावादिनी माँ सरस्वती है। कहते हैं कि श्रेष्ठ विचारों से सम्पन्न ‍व्यक्ति की जुबान पर माँ सरस्वती विराजमान रहती है। बोलने से ही सत्य और असत्य होता है। अच्छे वचन बोलने से अच्छा होता है और बुरे वचन बोलने से बुरा, ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। बोलना हमारे सामाजिक जीवन की निशानी है। हमारे मानव होने की सूचना है। बोलने से ही हम जाने जाते हैं और बोलने से ही हम विख्यात या कुख्‍यात भी हो सकते हैं। एक झूठा वचन कई लोगों की जान ले सकता है और एक सच्चा वचन कई लोगों की जान बचा भी सकता है। जैन, बौद्ध और योग दर्शन में सम्यक वाक के महत्व को समझाया गया है। सम्यक वाक अर्थात ना ज्यादा बोलना और ना कम। उतना ही बोलना जितने से जीवन चलता है। व्यर्थ बोलते रहने का कोई मतलब नहीं। भाषण या उपदेश देने से श्रेष्ठ है कि हम बोधपूर्ण जीए, ऐसा धर्म कहता है। वाक का सकारात्मक पक्ष यह है कि इस जग में वाक ही सब कुछ है यदि वाक न हो तो जगत के प्रत्येक कार्य को करना एक समस्या बन जाए। नकारात्मक पक्ष यह कि मनुष्य को वाक क्षमता मिली है तो वह उसका दुरुपयोग भी करता है कड़वे वचन कहना, श्राप देना, झूठ बोलना या ऐसी बातें कहना जिससे की भ्रमपूर्ण स्थिति का निर्माण होकर देश, समाज, परिवार, संस्थान और धर्म की प्रतिष्ठा गिरती हो।आज के युग में संयमपूर्ण कहे गए वचनों का अभाव हो चला है। इस युग को बहुत आवश्यकता है इस बात की कि वह बोलते वक्त सोच-समझ लें कि इसके कितने दुष्परिणाम होंगे या इस का मनोवैज्ञानिक प्रवाभ क्या होगा। सनातन हिंदू धर्म ही नहीं सभी धर्मों में वाक संयम की चर्चा की गई है।

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