बुधवार, 27 जनवरी 2010

सपूत

पुराने जमाने की बात है। तब आज की तरह पानी के लिए नल और बोरिंग जैसी सुविधा नहीं थी। सिर पर कई घड़ों का भार लिए स्त्रियाँ कई किलोमीटर दूर तक जाकर कुओं या बावड़ियों से पानी भर कर लाती थीं। एक बार इसी तरह तीन महिलाएँ घर की जरूरत के लिए पानी भरकर ला रही थीं। तीनों ने आपस में बातचीत प्रारम्भ की। पहली महिला ने कहा- 'मेरा पुत्र बहुत बड़ा विद्वान है। सभी शास्त्रों का विषद ज्ञान रखता है। देश भर के विद्वान उसकी धाक मानते हैं। आज तक कोई भी उसे शास्त्रार्थ में नहीं हरा सका है।'

दूसरी महिला भी कहाँ पीछे रही, 'हाँ, बहन पुत्र यदि विद्वान हो तो पूरा वंश गौरवान्वित होता है। मेरा पुत्र भी बहुत चतुर है। व्यवसाय में उसका कोई सानी नहीं। उसके व्यवसाय संभालने के बाद व्यापार में बहुत प्रगति हुई है।'

तीसरी महिला चुप ही रही। उसे चुप देखकर बाकी दोनों महिलाओं ने कहा, 'क्यों बहन, तुम अपने पुत्र के बारे में कुछ नहीं कह रही उसकी योग्यता के बारे में भी तो हमें कुछ बताओ।'

तीसरी महिला ने उत्तर दिया, 'क्या कहूँ बहन, मेरा पुत्र बहुत ही साधारण युवक है। अपनी शिक्षा के अलावा घर के काम काज में अपने पिता का हाथ बँटाता है। कभी-कभी जंगल से लकड़िया भी बीन कर लाता है।'

अभी वे तीनों महिलाएँ थोड़ी दूर ही चली थीं की दोनों महिलाओं के विद्वान और चतुर पुत्र साथ जाते हुए रास्ते में मिल गए। दोनों महिलाओं ने गदगद होते हुए अपने पुत्र का परिचय कराया। बहुत विनम्रता से उन्होंने तीनों माताओं को प्रणाम किया और अपनी राह चले गए। उन्होंने कुछ दूरी ही तय की ही थी कि अचानक तीसरी महिला का पुत्र वहाँ आ पहुँचा।

उसके पास आने पर बहुत संकोच के साथ उस तीसरी महिला ने अपने पुत्र का परिचय दिया। उस युवक ने सभी को विनम्रता से प्रणाम किया और बोला, 'आप सभी माताएँ इस तपती दुपहरी में इतनी दूरी तय कर आई हैं। लाइए, कुछ बोझ मैं भी बँटा दूँ।' और उन महिलाओं के मना करते रहने के बावजूद उन सबसे एक-एक पानी का घड़ा लेकर अपने सिर पर रख लिया। अब दोनों माताएँ शर्मिंदा थीं।

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